संस्कृत के पुरोधा आचार्य प्रो. राम यत्न शुक्ल को मिला पद्मश्री पुरस्कार

संस्कृत के पुरोधा आचार्य प्रो. राम यत्न शुक्ल को मिला पद्मश्री पुरस्कार

yugantaradminJanuary 26, 20211min2560

काशी स्थित सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के व्याकरण के प्रकाण्ड पण्डित प्रो. राम यत्न शुक्ल को भारत सरकार की तरफ से इस वर्ष पद्मश्री पुरस्कार हेतु चयनित किया गया है। यह पुरस्कार शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान हेतु दिया जा रहा है। गौरतलब है कि पद्मश्री पुरस्कार, भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्मभूषण के पश्चात् देश का चौथा सर्वोच्च पुरस्कार माना जाता है। प्रो. शुक्ल को यह पुरस्कार मिलने से सम्पूर्ण काशी नगरी हृदयाह्लादित है। देश-विदेश में फैले उनके विद्यार्थी भी अत्यन्त प्रसन्नचित्त हैं।

कौन हैं प्रो. राम यत्न शुक्ल?


प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रो. शुक्ल काशी के वासी हैं। इनका जन्म 1 जनवरी 1932 को एक धार्मिक परिवार में हुआ था। इनके पिता भी संस्कृत के अच्छे विद्वान् थे, अतः संस्कृत का प्रारम्भिक एवं गहन अध्ययन उन्होंने अपने पिताश्री के चरणों में रहकर ही प्राप्त किया। उनकी शिक्षा-दीक्षा काशी में ही हुई। इन्होंने काशी में स्थित विश्व विश्रुत सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में कई वर्षों तक अध्यापन किया है। सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के व्याकरण विभाग के अध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद प्रो. राम यत्न शुक्ल ने दिल्ली स्थित श्री लाल बहादुर संस्कृत विद्यापीठ में एक विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में भी कार्य किया। आप राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, दिल्ली से भी शास्त्र चूड़ामणि विद्वान के रूप में सम्बद्ध रहे। विद्वत्ता एवं ओजस्विता के कारण इन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इनमें भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा प्रदत्त सर्टिफिकेट ऑफ ऑनर एवं के.के बिड़ला फॉउण्डेशन से प्राप्त वाचस्पति पुरस्कार (2005) विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं। उनके द्वारा पढ़ाए गए अनेक छात्र आज देश के विभिन्न भागों में उच्च पदों पर आसीन हैं। कई छात्र ऐसे हैं, जो देश के सुप्रसिद्ध विश्वविद्यालयों यथा – काशी हिन्दु विश्वविद्यालय, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय इत्यादि में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। 88 वर्ष से अधिक की आयु में वे आज भी संस्कृत भाषा के पठन-पाठन में अपना नियमित योगदान दे रहे हैं। संस्कृत के प्रति उनके समर्पण एवं लगन के कारण ही उन्हें काशी विद्वत्परिषद् का अध्यक्ष मनोनीत किया गया है।



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