– वरिष्ठ संवाददाता डॉ. राजेश कुमार की रिपोर्ट।
संस्कृत विभाग पीजीडीएवी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग की अकादमिक समिति-संस्कृत समवाय के द्वारा वेदव्याख्यान मंजरी व्याख्यानमाला के अंतर्गत शुक्रवार 31 जुलाई, 2020 को एक वेबिनार का आयोजन किया गया। जिसका विषय- कौटिल्य की प्रशासन व्यवस्था निर्धारित किया गया था। वक्ता के रूप में प्रो. संतोष कुमार शुक्ल, संकाय प्रमुख संस्कृत एवं प्राच्य विद्या अध्ययन संस्थान, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली आमंत्रित थे। कार्यक्रम के प्रारंभ में कॉलेज के प्राचार्य डॉ. मुकेश अग्रवाल ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि संस्कृत भाषा में ज्ञान विज्ञान का अथाह भंडार है। उस ज्ञान विज्ञान को अपने बच्चों से परिचय करवाने के लिए हमने यह वेदव्याख्यान मंजरी व्याख्यानमाला को शुरू किया था। हमारा कॉलेज स्वामी दयानंद सरस्वती जी के विचारों को लेकर चलता है। साथ ही पूरी दुनिया मानती है कि संस्कृत साहित्य में जो विद्वान, ऋषि, मुनि हैं या ऐसा ज्ञान है वह अब नहीं है। इसलिए हम सबको उसको जानना चाहिए। वेद का कोई साम्य नहीं है संस्कृत साहित्य की कोई तुलना नहीं है काफी सारी चींजे हिंदी में अनुदित हैं जो अंग्रेजी में पढ़ना चाहते हैं उनके लिए भी सुविधा है, संस्कृत में तो है ही। बच्चों को प्रेरित करते हुए डॉ. अग्रवाल ने कहा कि पुस्तकालय में जाकर सभी बच्चों को कौटिल्य के अर्थशास्त्र को देखना और पढ़ना चाहिए। इस अवसर पर संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ. दिलीप कुमार झा ने वक्ता का परिचय कराते हुए विषय प्रवर्तन किया। डॉ. दिलीप कुमार झा ने कहा कि मीमांसा और धर्मशास्त्र के निष्णात विद्वान प्रो. संतोष कुमार शुक्ल जी के 20 से अधिक शोधपत्र एवं कई सारी पुस्तकें प्रकाशित हैं। कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से पुरस्कृत प्रो. शुक्ल को इस रोचक विषय पर हमने आज विशेष व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया है। संस्कृत साहित्य में कुछ ऐसे साहित्य हैं, जो सार्वकालिक हैं। जैसै कालिदास उसी तरह कौटिल्य का अर्थशास्त्र मल्टीडिसिप्लिनरी पुस्तक है। जिसमें तत्कालीन समाज की आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, धार्मिक इत्यादि पहलुओं की जानकारी मिलती हैं। उनके सिद्धान्त आज भी प्रांसगिक है। डॉ. झा ने आगे कहा कि बहुत लम्बा कालखंड गुलामी का रहा जिसमें बहुत सारी पांण्डुलिपियां नष्ट हो गई। इसी क्रम में उन्होंने यह भी कहा कि पं. शामशास्त्री ने कौटिल्य के अर्थशास्त्र का अंग्रेजी में 1905 ई. में तथा गणपति शास्त्री ने संस्कृत में प्रकाशित किया। इस प्राचीन ग्रंथ में आधुनिक सोच की तरह फेडरल व्यवस्था थी, जिसमें मंत्रिपरिषद, ग्राम पंचायत इत्यादि हैं। प्रशासनिक व्यवस्था लोककल्याण के लिए थी वसुधैव कुटुम्बकम् वाली।। इस वेबिनार का विधिवत शुरुआत संस्कृत की समृद्ध परंपरा मंगलाचरण से हुई। वैदिक मंगलाचरण कॉलेज की संस्कृत आनर्स द्वितीय वर्ष की छात्रा आकांक्षा ने किया वहीं लौकिक मंगलाचरण द्वितीय वर्ष की ही छात्रा अर्चना ने किया।
वक्ता के रूप में प्रो. संतोष कुमार शुक्ल ने व्याख्यानमाला के गौरवशाली परम्परा के अनुरूप बहुत ही सहज सरल ढंग से छात्रों को ध्यान में रखते हुए अपना व्याख्यान प्रारंभ किया। उन्होंने कहा कौटिल्य को याद करना इसलिए जरूरी है कि वे दुनिया के महान विचारक एवं चिन्तक थे, वे राष्ट्र निर्माता थे। उनके मन में पीड़ा थी वो राष्ट्र को अखंड अपराजित बनाना चाहते थे। एक आचार्य के रूप में शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र में परिवर्तन की धारा बनाई। कौटिल्य की शिक्षा तक्षशिला में हुई, जो इस समय भारत में नहीं है। वे आजीवन ब्रह्मचारी रहें। विद्यार्थी तैयार करते रहे। उन्होंने जीवन राष्ट्र को समर्पित किया। ऐसा ग्रंथ दिया जो कौटिल्य के अर्थशास्त्र के नाम से प्रसिद्ध है।कौटिल्य जिन्हें विष्णुगुप्त तथा चाणक्य के नाम से भी हम जानते हैं। शासन व्यवस्था की हर बात कौटिल्य अर्थशास्त्र में है। उसमें सूत्ररूप में बातें कहीं गई हैं। व्यवस्थाओं का विश्वकोश है कौटिल्य का अर्थशास्त्र। कौटिल्य ने राजाओं के शासन विधि का निर्माण किया, जो राजा बनना चाहते हैं या राज्य शासन में जाना चाहते हैं, उन्हें यह ग्रंथ पढ़ना चाहिए। यह ग्रंथ बहुत बड़ा हो सकता है लेकिन संक्षेप में लिखा है कम शब्दों में अधिक बातें। उसके बाद प्रो. शुक्ल ने राजा के गुणों को बताते हुए कहा कि राजा को खुद विनीत होना चाहिए। विद्या युक्त होना चाहिए। विद्या केवल किताब पढ़ने से नहीं आती है। वह अधीति (अध्ययन), बोध , जीवन में आचरण से आती है तभी हमें इसके उपदेश के प्रचार का अधिकार मिलना चाहिए। दूसरों को उपदेश तो हर कोई देता है पर कोई अपने पर लागू नहीं करना चाहता। प्रजा के हित में ही राज्य का हित है। राजा न्याय करें, न्याय ऐसा हो कि जिसने अपराध किया है उसे दंड मिले, जिसने अपराध नहीं किया है उसे दंड नहीं मिले। क्योंकि अपराधी को दंड नहीं मिलता तो प्रजा खुश नहीं रहती है। कौटिल्य अर्थशास्त्र में राजा के बारे में विस्तार से कहा गया है। प्रो. संतोष शुक्ल ने अपने संबोधन के अगले भाग में कहा कि अर्थशास्त्र शासन-प्रशासन के लिए है। राजा और राजनीति के लिए यह टेक्स्टबुक की तरह है। फिर उन्होंने अर्थशास्त्र के कलेवर को बताते हुए कहा कि यह बहुत व्यापक ग्रंथ है जिसमें राजनीति , अर्थ-वित्तनीति , विदेशनीति, सामान्य लोक प्रशासन से लेकर मिलिट्री सांइस तक अनेक विषय हैं। यह 15 अधिकरण और 150 अध्यायों में बटां हुआ है। पहला अधिकरण विनयाधिकरण है जिसमें नियुक्तियों पर चर्चा है। राजा के बाद आमात्य मंत्री पुरोहित की नियुक्ति। गुप्त उपायों से गुप्तचरों की नियुक्ति का वर्णन है। इंटेलिजेंस पर जोर दिया गया है, क्योंकि पूरा सिस्टम उसी पर आधारित होता है। राजदूतों की नियुक्तियों से लेकर आमात्य के कुल 30 विभाग उसमें बताया गया है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में व्यक्ति का जीवन शीशे की तरह साफ था, चार प्रकार से एक व्यक्ति की परीक्षा होती थी-धर्मोपधा, अर्थोपधा, कामोपधा,और भयोपधा। प्रो. शुक्ल ने दो उदाहरण देकर बताया कि शासन व्यवस्था में रहने वाले लोग स्वाभाविक रूप से भ्रष्टाचार कर सकते हैं, जैसे जिह्वा पर मधु और विष रखें। क्या यह सोच सकते हैं कि जीभ उसका स्वाद न लें। यह हो नहीं सकता। इसी तरह संस्था अथवा प्रशासन में लगे लोग जरूर भ्रष्टाचार करेंगे। उन्होंने दूसरा उदाहरण यह दिया कि जिस प्रकार मछली पानी में चलती है और चलते-चलते कब पानी पी लेती है पता नहीं चलता। उसी तरह शासन व्यवस्था में शामिल लोग भ्रष्टाचार करते हैं। इसलिए उस पर निगरानी जरूरी है। इसी तरह तीक्ष्ण दण्ड, मृदु दण्ड इत्यादि दण्ड व्यवस्था को भी उन्होंने समझाया। प्रो. शुक्ल ने व्याख्यान के अंतिम भाग में कहा कि अर्थशास्त्र के सप्तांग सिद्धांत में राजा विधि निर्माता नहीं है बल्कि उसका पहला भाग है। राजत्व भी एक व्यक्ति से नहीं चलता है, जो 30 विभाग बनाऐँ गए हैं बिना उसके सहयोग के नहीं चलता। इस तरह समग्रता से कौटिल्य के कर व्यवस्था सहित सभी प्रशासन व्यवस्थाओं को प्रो. शुक्ल ने समझाया।
इससे पहले पीजीडीएवी कॉलेज की उप प्राचार्या डॉ. कृष्णा शर्मा ने आशीर्वचन दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि मैं उप प्राचार्या के रूप में पहली बार भाग ले रही हूँ। वैसे वेद व्याख्यान मंजरी में हमेशा रही हूँ। जब दिलीप जी ने मुझे यह विषय बताया तो हमने भी पढ़ा। उन्होंने एक श्लोक –
राज्ञ धर्मिणी धर्मिष्ठाः पापे पापा समे समाः।
राजानमनुवर्तन्ते यथा राजा तथा प्रजा।।
को समझाते हुए कहा कि जैसा राजा होता है वैसी ही प्रजा होती है, राजा यदि अत्याचारी हो, पापी हो तो प्रजा भी उसका अनुकरण करती है, उसी तरह राजा के धार्मिक होने पर प्रजा धार्मिक। उन्होंने अपने संबोधन के अंत में ऑनलाइन शिक्षा की खामियों का उल्लेख किया, जिसमें विद्यार्थी सिर्फ सुनते हैं, जब सामने में होते हैं, तब बच्चे शिक्षक से आचरण भी सीखते हैं।
वेबिनार का समापन धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। धन्यवाद ज्ञापन संस्कृत विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. गिरिधर गोपाल शर्मा ने किया। उन्होंने वेदव्याख्यानमंजरी व्याख्यानमाला के शुभारंभ करने वाले प्राचार्य डॉ. मुकेश अग्रवाल को धन्यवाद देते हुए कहा कि उनके प्रयासों से कॉलेज में संस्कृत से इतर जो बच्चें हैं सबको संस्कृत के ज्ञान-विज्ञान से अवगत कराने के लिए यह व्याख्यानमाला प्रारंभ किया, तथा हमेशा उत्साहवर्धन करते रहते हैं। उनके कारण ही यह व्याख्यानमाला हो रही है। उनका आभार। उसी तरह प्रशासनिक रूप से उपप्राचार्या डॉ. कृष्णा शर्मा पहली बार भाग ले रही हैं, लेकिन वेदव्याख्यान मंजरी में मंच संचालन से लेकर तमाम व्यवस्था तक वह करती रही हैं, उनका भी धन्यवाद। प्रो. संतोष कुमार शुक्ल ने सहज ढंग से बच्चों को अर्थशास्त्र के बारे में बताया। विष्णुगुप्त, चाणक्य, कौटिल्य, को हमारे बच्चे विशाखदत्त के मुद्राराक्षस नाटक के माध्यम से पढते रहें है, आज उनका और ज्ञानसंवर्धन हुआ है। इस अवसर पर हिन्दी विभाग के प्रो. मनोज कैन ने भी अपने विचार रखे। काबिलेगौर है कि इस वेबिनार में विभिन्न महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के संस्कृत प्रेमी विद्वानों ने भी भाग लिया।